सिंधु घाटी की सभ्यता
भारत का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता के जन्म के साथ आरंभ हुआ, और अधिक बारीकी से कहा जाए तो हड़प्पा सभ्यता के समय इसकी शुरूआत मानी जाती है। यह दक्षिण एशिया के पश्चिमी हिस्से में लगभग 2500 बीसी में फली फूली, जिसे आज पाकिस्तान और पश्चिमी भारत कहा जाता है। सिंधु घाटी मिश्र, मेसोपोटामिया, भारत और चीन की चार प्राचीन शहरी सबसे बड़ी सभ्यताओं का घर थी। इस सभ्यता के बारे में 1920 तक कुछ भी ज्ञात नहीं था, जब भारतीय पुरातात्विक विभाग ने सिंधु घाटी की खुदाई का कार्य आरंभ किया, जिसमें दो पुराने शहरों अर्थात मोहन जोदाड़ो और हड़प्पा के भग्नावशेष निकल कर आए। भवनों के टूटे हुए हिस्से और अन्य वस्तुएं जैसे कि घरेलू सामान, युद्ध के हथियार, सोने और चांदी के आभूषण, मुहर, खिलौने, बर्तन आदि दर्शाते हैं कि इस क्षेत्र में लगभग पांच हजार साल पहले एक अत्यंत उच्च विकसित सभ्यता फली फूली।
सिंधु घाटी की सभ्यता मूलत: एक शहरी सभ्यता थी और यहां रहने वाले लोग एक सुयोजनाबद्ध और सुनिर्मित कस्बों में रहा करते थे, जो व्यापार के केन्द्र भी थे। मोहन जोदाड़ो और हड़प्पा के भग्नावशेष दर्शाते हैं कि ये भव्य व्यापारिक शहर वैज्ञानिक दृष्टि से बनाए गए थे और इनकी देखभाल अच्छी तरह की जाती थी। यहां चौड़ी सड़कें और एक सुविकसित निकास प्रणाली थी। घर पकाई गई ईंटों से बने होते थे और इनमें दो या दो से अधिक मंजिलें होती थी।
उच्च विकसित सभ्यता हड़प्पा में अनाज, गेहूं और जौ उगाने की कला ज्ञात थी, जिससे वे अपना मोटा भोजन तैयार करते थे। उन्होंने सब्जियों और फल तथा मांस, सुअर और अण्डे का सेवन भी किया। साक्ष्य सुझाव देते हैं कि ये ऊनी तथा सूती कपड़े पहनते थे। वर्ष 1500 से बी सी तक हड़प्पन सभ्यता का अंत हो गया। सिंधु घाटी की सभ्यता के नष्ट हो जाने के प्रति प्रचलित अनेक कारणों में शामिल है आर्यों द्वारा आक्रमण, लगातार बाढ़ और अन्य प्राकृतिक विपदाओं का आना जैसे कि भूकंप आदि।