गुप्त साम्राज्य
कुशाणों के बाद गुप्त साम्राज्य अति महत्वपूर्ण साम्राज्य था। गुप्त अवधि को भारतीय इतिहास का स्वर्णिम युग कहा जाता है। गुप्त साम्राज्य का पहला प्रसिद्ध सम्राट घटोत्कच का पुत्र चन्द्रगुप्त था। उसने कुमार देवी से विवाह किया जो कि लिच्छिवियों के प्रमुख की पुत्री थी। चन्द्रगुप्त के जीवन में यह विवाह परिवर्तन लाने वाला था। उसे लिच्छिवियों से पाटलीपुत्र दहेज में प्राप्त हुआ। पाटलीपुत्र से उसने अपने साम्राज्य की आधार शिला रखी व लिच्छिवियों की मदद से बहुत से पड़ोसी राज्यों को जीतना शुरू कर दिया। उसने मगध (बिहार), प्रयाग व साकेत (पूर्वी उत्तर प्रदेश) पर शासन किया। उसका साम्राज्य गंगा नदी से इलाहाबाद तक फैला हुआ था। चन्द्रगुप्त को महाराजाधिराज की उपाधि से विभूषित किया गया था और उसने लगभग पन्द्रह वर्ष तक शासन किया।
चन्द्रगुप्त का उत्तराधिकारी 330 ई0 में समुन्द्रगुप्त हुआ जिसने लगभग 50 वर्ष तक शासन किया। वह बहुत प्रतिभा सम्पन्न योद्धा था और बताया जाता है कि उसने पूरे दक्षिण में सैन्य अभियान का नेतृत्व किया तथा विन्ध्य क्षेत्र के बनवासी कबीलों को परास्त किया।
समुन्द्रगुप्त का उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त हुआ, जिसे विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है। उसने मालवा, गुजरात व काठियावाड़ के बड़े भूभागों पर विजय प्राप्त की। इससे उन्हे असाधारण धन प्राप्त हुआ और इससे गुप्त राज्य की समृद्धि में वृद्धि हुई। इस अवधि के दौरान गुप्त राजाओं ने पश्चिमी देशों के साथ समुद्री व्यापार प्रारम्भ किया। बहुत संभव है कि उसके शासनकाल में संस्कृत के महानतम कवि व नाटककार कालीदास व बहुत से दूसरे वैज्ञानिक व विद्वान फले-फूले।
गुप्त शासन की अवनति
ईसा की 5वीं शताब्दि के अन्त व छठवीं शताब्दि में उत्तरी भारत में गुप्त शासन की अवनति से बहुत छोटे स्वतंत्र राज्यों में वृद्धि हुई व विदेशी हूणों के आक्रमणों को भी आकर्षित किया। हूणों का नेता तोरामोरा था। वह गुप्त साम्राज्य के बड़े हिस्सों को हड़पने में सफल रहा। उसका पुत्र मिहिराकुल बहुत निर्दय व बर्बर तथा सबसे बुरा ज्ञात तानाशाह था। दो स्थानीय शक्तिशाली राजकुमारों मालवा के यशोधर्मन और मगध के बालादित्य ने उसकी शक्ति को कुचला तथा भारत में उसके साम्राज्य को समाप्त किया।
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