रविवार, 14 अगस्त 2016

क्या था डॉ. ऐ पी जे अब्दुल कलाम के जीवन का सबसे बड़ा अफ़सोस?

क्या था डॉ. ऐ पी जे अब्दुल कलाम के जीवन का सबसे बड़ा अफ़सोस?

अगर आपको अंदाजा लगाने को कहा जाए कि बताइए डॉ. ऐ पी जे अब्दुल कलाम की ज़िन्दगी का सबसे बड़ा अफ़सोस क्या रहा होगा तो आप क्या बोलेंगे?

जब मेरे मन में ये सवाल आया तो मुझे लगा कि उनका सबसे बड़ा अफ़सोस शायद किसी innovation को लेकर रहा होगा, वो कोई बड़ा आविष्कार करना चाहते होंगे, may be कोई missile या कोई ख़ास तरह का राकेट… पर कर नहीं पाए होंगे और यही उनका सबसे बड़ा regret होगा!
And I think और भी बहुत से लोग इस सवाल के जवाब में ऐसा ही कुछ सोचेंगे । लेकिन जब आप इस प्रश्न पर डॉ कलाम का उत्तर सुनेंगे तो मेरी तरह आप भी थोड़ा surprise होंगे और साथ ही महसूस कर पायेंगे कि सचमुच डॉ कलाम कितनी बड़ी और कितनी महान सख्शियत थे। तो आइये जानते हैं:

क्या था डॉ कलाम के जीवन का सबसे बड़ा अफ़सोस ? / Dr. A P J Abdul Kalam Anecdote in Hindi

एक बार डॉ. ऐ पी जे अब्दुल कलाम मुंबई के किसी कॉलेज की एनुअल सेरेमनी में गए हुए थे। वहां एक 20 साल के युवक ने डॉ. कलाम से पूछा, “ सर, आपको इतनी सफलताएं मिली हैं। निश्चित रूप से आप कभी-कभार असफल भी हुए होंगे। आप हमेशा कहते हैं कि आपने असफलताओं से सीखकर सफलता प्राप्त की है। मैं कुछ जानना चाहता हूँ: क्या कुछ ऐसा है जो आप नहीं कर पाए, और अभी भी आपको अफ़सोस होता है कि आप वो चीज नहीं कर पाए?”
डॉ. कलाम कुछ देर सोचने के बाद बोले, “ आप जानते हैं, घर पे मेरे एक बड़े भाई है जो अब 98 साल के हैं। वे धीमे-धीमे चल पाते है, बिना किसी का सहारा लिए। उनके विज़न में कुछ प्रॉब्लम है और इस वजह से हमे घर में हेमशा पर्याप्त रौशनी रखनी पड़ती है, खासतौर पे रात में।
अब देखिये, रामेश्वरम में कभी-कभी बिजली चली जाती है, इसलिए  उनका इधर-उधर जाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए पिछले साल मैंने घर पे अच्छी बैटरी वाला एक रूफ टॉप सोलर पैनल लगवा दिया। जब सूरज निकलता है तब पैनल पॉवर देता है, और रात में बैटरी पॉवर सप्लाई करने का काम करती है। अब हर समय पर्याप्त पॉवर रहती है। मेरा भाई खुश है।
जब मैं अपने भाई को खुश देखता हूँ तो मैं भी अच्छा महसूस करता हूँ। लेकिन साथ ही मुझे अपने पेरेंट्स की भी याद आ जाती है। दोनों लगभग सौ साल तक जिए , और अपने आखिरी सालों में उन्हें भी देखने में कठिनाई होती थी। तीन दशक पहले बिजली ज्यादा कटती थी। तब मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पाया। तब कोई सोलर पॉवर नहीं था। ये बात कि मैं उनकी तकलीफ दूर करने के लिए कुछ नहीं कर पाया मेरा सबसे बड़ा अफ़सोस है, कुछ ऐसा जो हमेशा मेरे साथ रहेगा।”
दोस्तों, डॉ कलाम की ये बात कितनी सरल और दिल छू लेने वाली है। इतना बड़ा वैज्ञानिक, भारत रत्न, देश का राष्ट्रपति… पर कितना सीधा, सरल और down to Earth…सचमुच उनका जीवन प्रेरणा का आपार स्रोत है।
एक तरफ जहाँ अपने माता-पिता की आँखों की समस्या के लिए कुछ ख़ास न कर पाना डॉ कलाम के जीवन का सबसे बड़ा अफ़सोस था वहीँ दूसरी तरफ आज करोड़ों युवा अपनी life में इतने busy हो गए हैं कि माता-पिता का ध्यान रखना तो दूर उनके पास उनसे बात तक करने का समय नहीं है!
हमें सोचना चाहिए कि कहीं हम ऐसे लोगों में से तो नहीं हैं जो रोजी रोटी और अपनी nuclear family की needs पूरा करने में इतना खो गए हैं कि महीनो-महीनो अपने पेरेंट्स से बात ही नहीं करते?
हमें सोचना चाहिए कि कहीं हम ऐसे लोगों में तो नहीं हैं जो ये जानते हुए भी कि माता-पिता तकलीफ में हैं पर फिर भी उनके लिए कुछ नहीं करते?
यदि हाँ, तो हमें डॉ कलाम से सीख लेनी चाहिए और हमे जन्म देने वाले, हज़ारों तकलीफें उठा कर हमें पाल-पोश कर बड़ा करने वाले अपने माता-पिता के लिए ज़रूर समय निकालना चाहिए और उनका ध्यान रखना चाहिए!
नहीं तो जीवन के अंत में हमें अपने पेरेंट्स का केयर न कर पाने का अफ़सोस हो न हो पर शायद हम सबको बनाने वाले ईश्वर को ज़रूर अफ़सोस होगा कि मैंने ये इंसान भी क्या चीज बना दी!

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